Lecture-On-Gandhi-इतिहास-में-गांधी-जैसा चिन्तक-कोई-दूसरा-नहीं-कुलाधिपति

Lecture-On-Gandhi-इतिहास-में-गांधी-जैसा चिन्तक-कोई-दूसरा-नहीं-कुलाधिपति

सागर वॉच।
 भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में गांधीजी के आगमन के पहले से ही वि-औपनिवेशीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी थी तिलक, गोखले और मालवीय जी जैसी महान विभूतियों के संपर्क में आकर गांधीजी द्वारा चलाई गई आज़ादी की मुहिम और अधिक बलवती हुई गांधीजी के आदर्श के अनुरूप आचार-विचार और विहार का आपस में संवाद होना चाहिए राष्ट्रभाषा, शिक्षा में मातृभाषा की आवश्यकता और स्वच्छता के संबंध में उनके विचार बहुमूल्य और प्रासंगिक हैं इतिहास में गांधी जी जैसा लेखक, विचारक,और चिन्तक कोई दूसरा नहीं है।

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यह विचार आज़ादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत गांधी जयन्ती के अवसर पर डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के समाज विज्ञान शिक्षण अधिगम केंद्र द्वारा आयोजित विशेष व्याख्यान सत्र में अपने उद्बोधन के दौरान व्यक्त किये स्वतंत्रता का मूल्यबोध और आज़ादी के 75 साल विषय के अंतर्गत यह आयोजन गांधी जी: आचार, विचार और विहार पर केंद्रित था

विशिष्ट अतिथि एवं कुशाभाऊ ठाकरे राष्ट्रीय संचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति प्रो. बल देवभाई शर्मा ने कहा कि भारत का इतिहास गुलामी का इतिहास नहीं बल्कि सतत संघर्ष का इतिहास है. भारतीयों ने एक क्षण के लिए भी गुलामी नहीं स्वीकार की बल्कि हमेशा प्रतिरोध किया. वीर नारायण सिंह, बिरसा मुंडा से लेकर भगत सिंह, चंद्रशेखर, खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारियों ने देश के लिए अपना बलिदान दिया है

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उन्होंने कहा कि आत्मिक चेतना से ही वास्तविक स्वतन्त्रता का बोध होता है. महात्मा गांधी उसी आत्मिक चेतना के प्रतीक हैं. गांधीजी का जीवन मूल्यबोध और मनुष्यता के उन्नयन के लिए समर्पित था. किसी भी अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम में समूचा विश्व भारत की तरफ देखता है. गांधीजी के विचारों की वैश्विक स्वीकारोक्ति यह प्रमाणित करती है कि दुनिया को रास्ता दिखाने का काम भारत ही कर सकता है.

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि आज भी हम भाषा, शिक्षा, जीवन-मूल्य जैसी अनेक चीजों  के बारे में बात करते समय गांधीजी के विचारों को देखते हैं यही गांधीजी के विचारों का महत्त्व और उनकी प्रासंगिकता है गांधीजी ने आज़ादी के महत्त्व का अहसास कराया है असहयोग, सत्याग्रह, दांडी मार्च और दलित आन्दोलनों के माध्यम से गांधीजी ने देश के भीतर ऊर्जा भरने का काम किया 

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उन्होंने कहा कि हमें यह धारणा बदलनी होगी कि हम बहुत कुछ नहीं बना सकते गांधीजी के आदर्श और विचार न केवल मनुष्यता की राह पर चलना सिखाते हैं बल्कि आत्मनिर्भर बनना भी सिखाते हैं गांधीजी की जयन्ती सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का संकल्प दिवस है गांधीजी के विचार हमें अपने जीवन में अपनाने होंगे और इसे मिशन बनाना होगा. पूरे देश को बदलने वाले क्रांति पुरुष के मार्ग पर चलने का संकल्प लेकर हम गांधीजी के सपनों का भारत बनाएंगे. उन्होंने इस अवसर पर विश्वविद्यालय में गांधी म्यूजियम बनाने की भी बात कही

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कार्यक्रम की शुरुआत में अतिथियों ने डॉ. गौर और गांधीजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. अतिथियों को पुष्पगुच्छ, शाल श्री-फल और गांधीजी का मोमेंटो भेंट किया गया. स्वागत उद्बोधन प्रो. आर. पी. मिश्रा ने दिया

कार्यक्रम में डॉ. आफरीन खान, डॉ. सी. सतीश, डॉ. विवेक जायसवाल, कुलसचिव संतोष सोहगौरा, डॉ. आशुतोष संकायाध्यक्ष प्रो. जी.एस. गिरी, प्रो. डी. के. नेमा, प्रो. के.के. एन. शर्मा, उपकुलसचिव सतीश कुमार, राजभाषा अधिकारी डॉ. छबिल मेहेर, डॉ. संजय शर्मा सहित ऑनलाइन माध्यम से विश्वविद्यालय के कई शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी और विद्यार्थी उपस्थित थेसंकायाध्यक्ष प्रो. जी.एस. गिरी, प्रो. डी. के. नेमा, प्रो. के.के. एन. शर्मा, उपकुलसचिव सतीश कुमार, राजभाषा अधिकारी डॉ. छबिल मेहेर, डॉ. संजय शर्मा सहित ऑनलाइन माध्यम से विश्वविद्यालय के कई शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी और विद्यार्थी उपस्थित थे

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