Har Ghar Tiranga Campaign- देश की स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाने का  ऐतिहासिक क़दम

विषेष लेख
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह 
वरिष्ठ लेखिका

 देश की स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाने के लिए जिस बड़े निर्णय की घोषणा की गई वह है “हर घर तिरंगा“ वस्तुतः यह हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देशवासियों को आजादी के अमृत महोत्सव पर दिया गया वह उपहार है जो उन्हें अपने घरों में ध्वज लहरा कर गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान कर रहा है। हर व्यक्ति को अपने देश के ध्वज से प्रेम होता है और वह उसे अपने घर में भी फहरा कर अपनी राष्ट्रीय भावना तथा देश के प्रति प्रेम को प्रदर्शित करना चाहता है ।आमजन की इसी अभिलाषा को प्रधानमंत्री ने समझा और अनुभव किया तथा देशवासियों को यह सुखद अवसर और अनुभूति प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय ध्वज संहिता में संशोधन करवाया। यह वास्तव में एक ऐतिहासिक कदम है।

     सन 2002 में भी भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया था तथा इसमें नागरिकों को कुछ कठोर शर्तों के साथ अपने घरों, कार्यालयों और फैक्ट्री में राष्ट्रीय दिवसों के अतिरिक्त किसी भी दिन ध्वज फहराने की अनुमति दी गई थी। अब नई संहिता की धारा 2 में सभी नागरिकों को अपने निज परिसर में अर्थात घरों में ध्वज फहराने का अधिकार दिया गया है।
       सोशल मीडिया पर भी यह छूट दी गई है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी डीपी में  राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लगा सकता है। हर घर तिरंगा के अभियान को उत्साहजनक और ग्लोबल बनाने के लिए एक साइड भी निर्मित की गई है जिस पर कोई भी व्यक्ति अपने घर में तिरंगा लहरा कर उसकी तस्वीर उस साइट पर अपलोड कर सकता है और अभियान में भाग लेने के स्वरूप सर्टिफिकेट डाउनलोड कर सकता है। 
      प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक स्वतंत्र ध्वज होता है, जो उस देश का प्रतीक और उसकी पहचान होता है। यह ध्वज संपूर्ण देशवासियों के साथ ही देश के गौरव का भी प्रतीक होता है। इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करेगा और अपने प्राणों से भी बढ़कर उसकी सुरक्षा करेगा।
      भारतीय राष्ट्रीय ध्वज जिसे हम तिरंगा के नाम से जानते हैं, अपने तीन रंगों के कारण उसे यह नाम मिला है। इस तिरंगे को डिज़ाइन किया था आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैयानंद ने। तिरंगे का वर्तमान स्वरूप सन 1947 की 22 जुलाई को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान स्वीकार किया गया था। इसके कुछ दिन बाद 15 अगस्त को जिस समय मध्यरात्रि को देश स्वतंत्र हुआ तो इस स्वतंत्रता की घोषणा तिरंगा फहरा कर की गई थी।
        भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्य तिरंगे में तीन रंग की आड़ी पट्टियां हैं। सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी। यह तीनों आड़ी पट्टियां समान अनुपात में रहती हैं। ध्वज की चौड़ाई का अनुपात 2ः3 का है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक के सारनाथ स्तंभ पर बने हुए चक्र से लिया गया है। इसका व्यास सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें कुल 24 तीलियां हैं।
       तिरंगे का इतिहास भी बहुत रोचक है। राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे को मान्यता प्राप्त होने से पूर्व सन 1906 की 7 अगस्त को पारसी बागान चौक अर्थात ग्रीन पार्क, कोलकाता में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की आड़ी पट्टियों से बनाया गया था।
        इसके बाद सन 1907 में मैडम कामा और उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा पेरिस में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। किंतु उसका स्वरूप भी तिरंगे के समान नहीं था। उस ध्वज में सबसे ऊपर की पट्टी पर एक कमल था और साथ में सात तारे थे जो सप्तऋषि को दर्शाते थे। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
         भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का तीसरा स्वरूप सन 1917 में सामने आया। जब  एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने आंतरिक शासन आंदोलन के दौरान इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में फहराया था। इस ध्वज में 5 लाल रंग की और 4 हरे रंग की आड़ी पट्टियां एक के बाद एक थीं और सप्तऋषि के आकार में सात तारे बने हुए थे। ध्वज के बायीं ओर ऊपरी किनारे पर यूनियन जैक था तथा एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
       इसके बाद राष्ट्रीय ध्वज का एक और स्वरूप सामने आया, जब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान सन 1921 में विजयवाड़ा में एक युवक ने झंडा बनाकर महात्मा गांधी को सौंपा। यह दो रंगों का बना था - लाल और हरे रंग का। किंतु गांधीजी ने उसे अस्वीकार करते हुए सुझाव दिया कि इसमें शांति के प्रतीक के रूप में सफेद पट्टी भी होनी चाहिए और साथ में स्वदेशी का संदेश देता हुआ चरखा भी होना चाहिए।
          सन 1931 में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को अपना असली स्वरूप मिलना प्रारंभ हुआ, जब तीन रंग के ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने पर सहमति बनी। इस ध्वज में केसरिया और हरे रंग के बीच में सफेद रंग तथा मध्य में चरखे की आकृति बनाई गई थी।
          जब देश को स्वतंत्रता मिलने की संभावना स्पष्ट दिखाई देने लगी तो ध्वज में परिवर्तन किए जाने का विचार सामने आया। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में घोषित करते हुए चरखे के स्थान पर अशोक के धर्म चक्र को अंकित किया गया। इस प्रकार स्वतंत्र भारत को अपना एक स्वतंत्र ध्वज प्राप्त हुआ। स्वतंत्र राष्ट्रीय ध्वज  में जो तीन रंग स्वीकार किए गए उसमें सबसे ऊपर केसरिया रंग शक्ति और साहस को प्रदर्शित करता है। सबसे निचली पट्टी जो हरे रंग की है, देश की उर्वरता, समृद्धि और भूमि की महत्ता को दर्शाती है। बीच में स्थित सफेद पट्टी शांति का प्रतीक है और उस पट्टी के मध्य में अंकित चक्र सत्य और निरंतर प्रगति का द्योतक है।
       हमें आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए इस बार अपने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को अपने-अपने घरों में फहराने का जो शुभ अवसर प्राप्त हुआ है, उसे सम्मानपूर्वक स्वीकार करना चाहिए । अपने घरों में राष्ट्रीय ध्वज लहरा कर राष्ट्र के प्रति अपनी निष्ठा एवं प्रेम को प्रदर्शित करना चाहिए। इस अवसर पर कवि श्यामलाल गुप्त “पार्षद“ का यह सुप्रसिद्ध गीत स्मरणीय है -
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला,
वीरों को हरषाने वाला,
मातृभूमि का तन-मन सारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा ...

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