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 साहित्य सरस्वती सागर का पाँचवा साप्ताहिक क्रम काव्य गोष्ठी आयोजन सरस्वती पुस्तकालय वाचनालय तीनबत्ती से आयोजित हुआ। जिसकी अध्यक्षता  अरूण दुबे तुलसी साहित्य अकादमी ने की। 

प्रथम सत्र संविधान और उसकी रूप रेखा पर संभाषण  देव वाणी के  क्रांति जबलपुरी ने किया,मौलिक अधिकार और नागरिक कर्तव्य पर बात की,संविधान गढने वाले सदस्य की जानकारी दी। हमारे कर्तव्य, अधिकार व निर्माण पर बात कही। 

द्वितीय सत्र में राजू चौबे ने सरस्वती वंदना का पाठ किया एवं फाल्गुन पर कविता सुनायी लो होली आ गयी साथ ही  गजल सुनायी। सब इंस्पेक्टर के के मौर्य ने तरन्नुम में ताजी रची गजल प्रस्तुत की। 

प्राचार्य डाॅ. दिनेश कुमार साहू ने मुक्त छंद कविता सुनायी। क्रांति जबलपुरी ने सरस कविता पाठ किया।डाॅ.नलिन निर्मल ने होली पर गीत सुनाया - दिलों में रंग बिखरा लो कि होली आज आयी है।पुष्पेन्द्र दुबे कुमार सागर ने गीत सुनाया-जिंदगी है नदी पार करना कठिन  जितना जीना कठिन  उतना मरना कठिन। 

गीतकार  मणिदेव ठाकुर ने फाल्गुन पर ससुराल जाने वा क्या- क्या दुर्गत भयी गीत सुनाया। कोस रय जे स्यात की घंडी।  मुकेश तिवारी ने सरस्वती गीत सुनाया। दया करो हे दयालु मैया,हे शारदे माँ। गोष्ठी संचालक राधाकृष्ण व्यास ने कविता सुनायी- सच कहता हूँ कसम आपकी,मुझको कुछ नहीं आता है लिख देता हूँ वह लोंगो को भाता है। 

के एल तिवारी अलबेला ने वर्तमान व्यवस्था पर कविता सुनायी - कोई दलबदलू उधर से इधर आ गया,लगा चुनावों में असर आ गया। वृंदावन राय सरल ने श्रँगार गजल वा कविता सुनायी - ओंठो पर टेशु खिले,महुआ महके नैन,देह लगे कामायनी,यह बसंत की देन। 

वरिष्ठ साहित्यकार पूरन सिंह राजपूत ने हास्य-व्यंग्य वा होली पर दोहे,चौकडिये और कविता सुनायी - आमंत्रित है सब मदमाने। खेलत कुंज महल में होरी। अध्यक्ष श्री अरूण दुबे जी ने गजल प्रस्तुत की - मैं तेरे हुक्म के कुर्बान मेरी शम्मे हया। आभार व्यक्त श्री पूरन सिंह राजपूत ने व्यक्त किया।

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