Religious Discourse 4th Day-क्रोध और लोभ भक्ति में अवरोध पैदा करते हैं
सागर वॉच। दीनदयाल नगर एस व्ही एन कॉलेज कथा परिसर में चल रही संगीतमय श्री भक्त माल कथा के चतुर्थ पावन दिवस स्वामी महंत श्री 1008 श्री किशोरदास जी ने कहा-कि क्रोधी का क्रोध और लोभी का लोभ भक्ति में अवरोध पैदा करते हैं।
उन्होंने कहा कि सगे -सम्बन्धी रिश्ते नाते बताते हैं लेकिन ये जगत संसार न हमारा था न हमारा है जब जीव छोड़कर चला जाता है तो कोई कुछ नहीं करता है। हमारे तो युगल सरकार ठाकुर जी हैं जो न कभी साथ छोड़े थे न कभी छोड़ेगें। भगवान हमारे थे हमारे रहेगें। जितने रिश्ते-नाते है बदल जाएगे पर मेरे ठाकुर को अपना आराध्य बनाकर जहां बैठाओगे वहीं बैठ जाएगें जो बिहारी से संबंध बनाओगे वहीं बन जाएगें।
महाराज जी ने कथा सुनाते हुए कहां कि हम कथा में कितने भी बैठ जाए कितनी भी कथा श्रवण कर लें जब तक हम कथा को अपने अन्तरमन में न बैठा लेंगे तब कि हमारे चित्त का मार्जन नहीं हो पाएगा।
उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि औषधि पान करने से हमारा रोग ठीक हो जाता है क्योंकि औषधि में रोग ठीक करने का तत्व होता है उसी प्रकार जीव के जीवन में आध्यात्मिक शत्रु काम, क्रोध, मद, लोभ हैं तो यदि कथा सत-संग रूपी औषधि को अपने मन में बैठा लेवें तो हमारे जीवन के सारे दुषण छण भर में नष्ट होकर के भगवान की निकटता प्राप्त होना शुरू हो जाएगी।
श्री नवलेश महाराज भागवत रत्न चित्रकूट धाम रामभद्र कृपाचार्य के शिष्य ने कहा- भगवान की कथा सुनाने वाले तीन प्रकार के होते हैं एक महान कथा वाचक, महत्तम कथा वाचक, महान्तम कथा वाचक।
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