Gour Utsav 2021- डॉ गौर ने प्रधानमंत्री का भी प्रस्ताव ठुकराया था सागर में विवि बनाने की चाह में -रघु ठाकुर

Gour Utsav 2021- डॉ गौर ने प्रधानमंत्री का भी प्रस्ताव ठुकराया था  सागर में विवि बनाने की चाह में -रघु ठाकुर

सागर वॉच। 25 नवंबर
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समाजवादी चिंतक एवं विचारक रघु ठाकुर ने डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में गौर सप्ताह के तहत आयोजित एक व्याख्यान में बताया कि डॉ हरिसिंह गौर ने दूसरी बार दिल्ली विश्वविद्यालय का कुलपति बनने संबंधी प्रधानमंत्री के प्रस्ताव को सिर्फ इसलिए नकार दिया था क्योंकि उनकी रूचि अपनी मातृभूमि में एक उच्चस्तरीय विश्वविद्यालय बनाने में थी।
 
इसके बाद ही वे सागर आए और यहां एक विश्वविद्यालय की स्थापना की डॉ गौर ने अपने सपनों के विश्वविद्यालय के लिए उच्च स्तरीय सोच रखी थी उन्होंने सागर विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति के रूप में दिल्ली जाकर जो मांग पत्र तत्कालीन शासकों के समक्ष रखा था उसमें सागर में अच्छा हवाई अड्डा निर्मित करने बेहतर सुविधाओं के साथ रेलवे स्टेशन का निर्माण करने और सागर को देश की राजधानी बनाने का प्रस्ताव रखा था 
 
 रघु ठाकुर ने बताया कि उस समय इलाहाबाद को दूसरी राजधानी के रूप में विकसित करने की चर्चा थी तब डॉक्टर हरिसिंह गौर ने यह तर्क भी रखे थे की इलाहाबाद को राजधानी का दर्जा सुरक्षा कारणों से नहीं मिलना चाहिए बुंदेलखंड का सागर बाहरी आक्रमणों की दृष्टि से भी सुरक्षित था इसलिए इसे राजधानी भी बनाना चाहिए 
 
यदि डॉ गौर के इन प्रस्तावों पर सकारात्मक फैसला हो जाता तो आज सागर विश्वविद्यालय कई गुना तरक्की कर देश ही नहीं दुनिया का श्रेष्ठ विश्वविद्यालय होता हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय से हमने क्या लिया इस बात पर विचार करने की जगह हमने विश्वविद्यालय को क्या दिया इस पर विचार किया जाए तो यह विश्वविद्यालय ज्यादा तरक्की करेगा
 
 व्याख्यान में डॉ सुरेश आचार्य , प्रोफेसर एसपी व्यास , डॉक्टर जी एस चौबे, कुलाधिपति बलवंत जानी और कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता ने भी अपने विचार रखे कार्यक्रम का संचालन कुलसचिव संतोष सह गोरा ने किया

डॉ. गौर के जन्म का दशक प्रतिभाओं के जन्म का दशक है- डॉ. चौबे 

ख्यातिलब्ध चिकित्सक डॉ. जी एस चौबे ने कहा कि डॉ. गौर का जन्म जिस दशक में हुआ, वह देश में प्रतिभाओं के जन्म का दशक था. 1861 में जन्मे रवींद्र नाथ ठाकुर को नोबल पुरस्कार से नवाजा गया. 1863 में जन्में स्वामी विवेकानंद के विचारों और कार्यों ने ने पूरी दुनिया में भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित किया. 1869 में जन्मे गांधीजी ने सत्य और अहिंसा के रास्ते पर पूरे देश को चलने की प्रेरणा दी और अप्रतिम त्याग का परिचय दिया. 1870 में जन्मे डॉ. गौर ने अपना सर्वस्व धन दानकर विद्या के एक मंदिर की स्थापना की. ऐसा उदाहरण पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा.  
 

डॉ.गौर के प्रयासों से खुला महिलाओं के लिए वकालत करने का रास्ता - प्रो. व्यास 

वरिष्ठ शिक्षाशास्त्री एवं वैज्ञानिक प्रो. एस पी व्यास ने कहा कि डॉ. गौर के व्यक्तित्व को शब्दों में उतारना बड़ा ही कठिन कार्य है. उनके सपने के अनुरूप बहुत से मंगल कार्य किये जा रहे हैं. यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है डॉ. गौर के सद्प्रयासों से महिलाओं के लिए वकालत का रास्ता खुला. वे एक व्यक्ति नहीं विचार थे विश्वविद्यालय की स्थापना करके एक छोटे से ग्रामीण इलाके को विश्वपटल पर सम्मान दिलाने वाले वे पहले व्यक्ति थे. उनका व्यक्तित्व संत का व्यक्तित्व था. उनके जन्म दिवस के अवसर पर हमें यह प्रण लेना होगा कि हम हर दिन की शुरुआत उनके संकल्पों के अनुरूप कार्य करने से करेंगे. अनुशासित रहकर इस शिक्षा के केंद्र को एक नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए सदैव श्रमशील रहेंगे
 
डॉ.गौर के सपनों के अनुरूप अपनी सामाजिक भागीदारी सुनिश्चित करेगा विश्वविद्यालय- कुलपति  


Gour Utsav 2021- डॉ गौर ने प्रधानमंत्री का भी प्रस्ताव ठुकराया था  सागर में विवि बनाने की चाह में -रघु ठाकुर



कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि डॉ. गौर बेहद अभाव की स्थिति से निकलकर उच्च शिखर पर पहुँचने वाले महान व्यक्तित्व थे. आज लोग अपने परिवार और बच्चों के लिए पूंजी इकट्ठा करते हैं. लेकिन डॉ. गौर ने परिवार के साथ-साथ समाज के लिए एक बड़ा हिस्सा भी रखा और एक अद्भुत शिक्षा का केंद्र हमें विरासत में मिला है

 हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम उनके अवदानों को याद करते हुए उनके संकल्पों को पूरा करने में अपनी ऊर्जा लगाएं. उन्होंने हाल ही में हुए विभिन्न संस्थाओं के साथ हुए अकादमिक अनुबंधों की चर्चा करते हुए कहा कि हम नए-नए पाठ्यक्रमों के माध्यम से ऐसी पीढ़ी तैयार करेंगे कि आने वाले समय में यह विश्वविद्यालय अपने शिखर पर पहुंचेगा

 ग्रामीण विकास, स्किल डेवलेपमेंट पाठ्यक्रमों के जरिये हम आदर्श गाँव भी बनायेंगे. समाज और समुदाय की बेहतरी के लिए भी विश्वविद्यालय अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेगा. डॉ. गौर ने विश्वविद्यालय के रूप में जो बीजारोपण किया है हम उनके संकल्पों और सपनों के अनुरूप इसे हरा-भरा बनाएंगे

उन्होंने कहा कि जल्द ही गौर म्यूजियम बनकर तैयार होगा. उन्होंने अपील की कि जिनके पास भी उनसे जुडी हुई वस्तुएं हों वे विश्वविद्यालय को सौंपकर अपना योगदान दें ताकि म्यूजियम के माध्यम से वे वस्तुएं सभी के लिए उपलब्ध हो पायें 
 
गौर जयंती पर शहर से विवि जुलूस आने की परंपरा 1970 में शुरू हुयी-प्रो.सुरेश आचार्य 

वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. सुरेश आचार्य ने कहा कि पूरे बुंदेलखंड में डॉ. हरीसिंह गौर 'गौर बब्बा' के नाम से जाने जाते हैं. यह यहाँ के लोगों का उनके प्रति अगाध प्रेम है और यह रिश्ता बड़ा ही नायाब है. उनके द्वारा स्थापित इस विश्वविद्यालय की रक्षा, इसकी समृद्धि, वृद्धि और इसकी कीर्ति पताका चारों ओर फहराना हम सबका कर्तव्य है

आज के आधुनिक युग में लोग अंधाधुंध संपत्ति इकठ्ठा कर विलासितापूर्ण जीवन जीने में संलग्न हैं लेकिन डॉ. गौर ने एक-एक पैसा जोड़कर विश्वविद्यालय के रूप में एक कल्पवृक्ष लगाया जिसमें देश भर के लोग अध्ययन करने के लिए आते हैं 

इस विश्वविद्यालय में बहुत कुछ अद्भुत है. 1970 में उनकी जन्म शताब्दी मनाई गई थी जिसमें शहर से एक बहुत बड़ा जुलूस विश्वविद्यालय में आया था आज भी यह परम्परा जारी है यह उनके प्रति श्रद्धानवत होने का अवसर है
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Sagar Watch

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