Gour-Utsav-2021-बिना-विद्यार्थी-के-शिक्षक-अस्तित्वहीन-है-अरुंधती कावडकर

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सागर वॉच। 24 नवम्बर
 विश्वविद्यालय ज्ञान और  गुरुत्व के केंद्र के रूप में होने चाहिए. विद्यार्थी गुरुत्व के स्पर्श से ही आगे बढ़ता है. उसके जीवन में गुरु का बहुत महत्त्व होता है. गुरु को भी अपने विद्यार्थियों को समझने की योग्यता होनी चाहिए शिक्षक अपने विद्यार्थियों के कारण ही शिक्षक कहलाता है. बिना विद्यार्थी के शिक्षक अस्तित्वहीन है 

यह विचार विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयन्ती सभागार में आयोजित गौर व्याख्यानमाला श्रृंखला के अंतर्गत राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: उच्च शिक्षा की नवाचारी भूमिका विषय पर आयोजित कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में सुश्री अरुंधती कावडकर, अखिल भारतीय महिला प्रकल्प सहप्रमुख एवं पालक अधिकारी, महाकौशल प्रान्त एवं मध्यभारत, भारतीय शिक्षण मंडल ने व्यक्त किये

उन्होंने  कहा कि  राष्ट्रीय शिक्षा नीति मातृभाव से प्रेरित है। एर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन की संकल्पना राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अहम हिस्सा है. यहीं से एक विद्यार्थी की नींव पड़ती है उन्होंने कहा कि नए भारत को गढ़ने के लिए भारतमाता को जानना बहुत ही आवश्यक है नदियों, पर्वतों और प्रकृति के सभी घटकों को जानना-पहचानना एक विद्यार्थी के लिए बहुत ही जरूरी है 

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इसी सिलसिले में मुख्य अतिथि
मुकुल कानिटकर ने कहा कि गुरु के बिना भारत का विश्वगुरु बनाना असंभव है
 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में ऐसे कई बिंदु हैं जो शिक्षक को नवाचार की पूरी स्वायत्तता देते हैं एक शिक्षक को नवाचार करने के लिए संस्था और सरकारों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए

उन्होंने कहा कि शासन केंद्रित व्यवस्था से समाज के अंतिम व्यक्ति का हित नहीं संभव है समाज केंद्रित व्यवस्था से ही अंतिम व्यक्ति का कल्याण संभव है राष्ट्रीय शिक्षा नीति पढ़ते समय उसमें हमें स्व मन का भाव मिलता है उसमें बहुत सी जीवनोपयोगी और तार्किक बातें हैं जिनके माध्यम से भारतीयता का बोध पैदा होता है

शिक्षक और संस्था दोनों का कार्य नवोन्मेष करना है आज के शिक्षक और विद्यार्थी को लीक से हटकर सोचना चाहिए. यही समय की मांग है पहले हम आयातित ज्ञान पर निर्भर थे लेकिन आज इस शिक्षा नीति के माध्यम से हम भारतीय शिक्षा पद्धति की बात कर पा रहे हैं यही इसका सुफल है मातृभाषा में पठन-पाठन के लिए हमें अनुवाद पर निर्भरता ख़त्म करते हुए मातृभाषा में पाठ्य सामग्री तैयार करना चाहिए. यह काम शिक्षकों का है यह चुनौती भी है हमें इसी को अवसर में बदलना है और यही नवाचार है। यह सृजनशीलता का अवसर भी है

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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. बलवंत राय शांतिलाल जानी ने कहा कि डॉ. हरीसिंह गौर की दैवीय विलक्षणता ही है कि हम प्रतिवर्ष उनके जन्मदिन को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं

वह एक विश्वविद्यालय स्थापित करने और सब कुछ दान कर देने वाले एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक स्वप्नद्रष्टा थे जो उन्होंने भावी भारतीय युवा पीढ़ी के लिए देखा था आज बहुत सी विदेश की संस्थायें भारतीय युवा मेधा को अपने यहाँ शिक्षा और रोजगार के लिए आकर्षित कर रही हैं

डॉ गौर ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कैम्ब्रिज में पढ़ाई तो की लेकिन वे भारतीय युवा पीढी के लिए भारत में कैम्ब्रिज जैसी संस्था शुरू करने का संकल्प लेकर भारत वापस आ गये यह विश्वविद्यालय उसी सपने की देन है भारतीय युवाशक्ति प्रचंड मेधा संपन्न है, इसका पलायन नहीं होना चाहिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति इसके लिए संकल्पित है  राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बहुआयामी क्रियान्वयन के माध्यम से  डॉ. गौर द्वारा स्थापित यह विश्वविद्यालय केवल सागर और मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए अनुकरणीय बनेगा 

डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के संस्थापक महान शिक्षाविद् एवं प्रख्यात विधिवेत्ता, संविधान सभा के सदस्य एवं दानवीर डॉ. सर हरीसिंह गौर के 152वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में दिनांक 21 नवंबर से 26 नवंबर तक आयोजित 'गौर उत्सव' के चौथे दिन 'आचार्य शंकर भवन' (मानविकी एवं समाज विज्ञान व्याख्यान कक्ष कॉम्प्लेक्स) का लोकार्पण मुकुल मुकुंद कानिटकर, राष्ट्रीय संगठन मंत्री, भारतीय शिक्षण मंडल, नागपुर, कुलाधिपति प्रो. बलवंतराय शांतीलाल जानी एवं कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता की गरिमामयी उपस्थिति में संपन्न हुआ

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