Vaccination-Regime Changes-क्या-वैक्सीन-की-कमी-से-बढ़ा-कोविशील्ड-की-दो-खुराकों-के-बीच-का-अंतर..?

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सागर वॉच @ 
भारत सरकार द्वारा कोविशील्ड वैक्शीन की दो खुराकों के बीच के अंतराल बढ़ाने पर सहमति देते ही देश में सरकार के इस फैसले के खिलाफ सवालों की झड़ी लग गयी है। सरकार के विरोधी भी काफी मुखर होकर सवाल कर रहे हैं कहीं यह फैसला पर्याप्त वैक्सीन नहीं होने की वजह से तो नहीं उठाया गया है ?  जब फरवरी में ही  यह अध्ययन  प्रकाशित हो चुका  था  कि 12 हफ्ते से ज्यादा अंतर पर वैक्सीन की कारगरता और बेहतर हो रही है तो उसी वक्त यह फैसला क्यों नहीं लिया गया? देरी क्यों की गई ?

सरकार ने कोविशील्ड की दो खुराकों के बीच अंतर को 6-8 हफ्ते से बढ़ाकर 12-16 हफ्ते करने की विशेषज्ञ समिति की सिफारिश को मान लिया है। अंतर बढ़ाने के फैसले का ऐलान करते हुए नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल ने कहा कि यह फैसला वैज्ञानिक तथ्यों और वास्तविक जिंदगी के अनुभवों के के आधार पर किया गया है। 

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अंग्रेजी न्यूज चैनल  को  इन्हीं सवालों  के जवाब में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने बताया कि दो खुराकों के बीच अंतराल बढ़ाने के फैसले के लिए उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर व्यावहारिक बताया है। उन्होंने कहा, आंकड़ें बताते हैं कि 12 हफ्ते से ज्यादा का अंतराल कारगर है। लेकिन इसके लिए रेंज होना चाहिए जैसे 12 से 14 हफ्ते या 12 से 16 हफ्ते। क्योंकि सभी को 12 हफ्ते में ही दूसरी खुराक लग जाएगी, ऐसा नहीं है इसलिए रेंज होना चाहिए। समिति ने आंकड़ों का विश्लेषण  करके 16 हफ्ते तक का रेंज तय किया। यह उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर भी यह व्यावहारिक है और आपूर्ति तंत्र व सुरक्षा के लिहाज से भी व्यावहारिक है।

जब फरवरी में ही  यह बात सामने आ गई थी कि 12 हफ्ते से ज्यादा अंतराल के नतीजे अच्छे मिल रहे हैं तो भारत में तभी यह फैसला क्यों नहीं किया गया, इस सवाल पर डॉक्टर गुलेरिया ने कहा कि तब समिति के सदस्यों में आम सहमति नहीं बन पाई थी। उन्होंने कहा, इस  साल की शुरुआत में यह बात सामने आई थी कि अंतर बढ़ने से वैक्सीन और ज्यादा असरदार हो रही है। लेकिन बाद में कनाडा और दूसरे देशों से और ज्यादा आंकडे़ सामने आए। 

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फरवरी में लैंसेंट का लेख प्रकाशित हुआ। समिति में उस पर चर्चा हुई थी लेकिन कोई आम सहमति नहीं बन पाई कि अंतराल को 12 हफ्ते से ऊपर किया जाए। अगर उस वक्त ही अंतराल को 12 हफ्ते से ज्यादा कर दिया गया होता तो आज जो आलोचक देरी पर सवाल उठा रहे हैं, वही तब कहते कि यह क्यों किया गया, और अधिक आंकड़ों का इंतजार क्यों नहीं किया गया।

फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट के चेयरमैन डॉक्टर अशोक सेठ ने भी कोविशील्ड की दो खुराकों के बीच अंतराल बढ़ाने के फैसले को सही ठहराया है। डॉक्टर सेठ ने कहा कि यह एक सही रणनीति है, वैज्ञानिक आधार पर है। फरवरी में ही यह आंकड़ा उपलब्ध था और तब डब्लूएचओ ने कहा था 12 हफ्ते का अंतराल रखना चाहिए। यूनाइटेड किंगडम  ने तब इस सलाह को अपनाया था। लेकिन तब भारत ने अंतर को यह कहकर इतना नहीं बढ़ाया था कि वह आंकड़ों से आश्वस्त नहीं है। और ज्यादा भरोसेमंद आंकड़ों का इंतजार करना सही था।

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डॉक्टर अशोक सेठ ने एकल खुराक की अहमियत को भी बताया कि किस तरह वह संक्रमण कम करने और मौतों को रोकने में कारगर है। उन्होंने कहा, आंकड़े  बता रहे हैं कि 12 हफ्ते से ज्यादा अंतराल पर कारगरता बेहतर हो रही है। एकल खुराक से भी बेहतर प्रतिरोधकता बन रही है।

 वैक्सीन की सिर्फ एक खुराक ही 3 महीने तक संक्रमण  रोकती है। उसकी कारगरता 60-65 प्रतिशत है। एक खुराक से ही संक्रमण फैलाने का खतरा 50 प्रतिशत कम हो रहा है और मौत की गुंजाइश 80 प्रतिशत कम हो रही है। उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात में हमें अधिक से अधिक आबादी को जितना जल्दी संभव हो सके वैक्सीन लगाना होगी ।

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