Culture-&-Tradition-Vine-of-Immoratality-लक्ष्मी-देवी-की-प्रिय-अमरबेल -में -छुपा-है-अमरता-का-राज

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दिवाली विशेष : लेखक- वरिष्ठ पत्रकार -कमलेश तिवारी 

 सागर वॉच । दीपवली पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने भक्तजन कई उपाय करते हैं। लेकिन ज्यादातर लोग इस बात से अंजान हैं कि खंडहरों, निर्जन ईलाकों मे किसी पेड़ से लिपटी पीले रंग के  धागेनुमा बेल अमरबेल कहलाती है व यह लक्ष्मी जी की प्रतीक मानी जाती है।

ऐसी मान्यता है कि जिस पूजन स्थल या पूजन सामग्री में अमरबेल मौजूद रहती है उस घर या स्थल पर लक्ष्मी जी का सहज आगमन होता है। इस बेल का धार्मिक महत्व के साथ औषिधीय महत्व भी बताया जाता है। इसमें बुढ़ापे को थामने की ताकत होती है। अंग्रेजी मे जिसे एंटी ऐजिंग गुण के रूप में जाना जाता है।

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इसके अलावा गृह-शांति व वास्तु पूजन में भी इसका प्रयोग होता है। आयुर्वेद व अध्यात्म ही नहीं साहित्य में भी इसका काफी उल्लेख किया गया है। कवि रहीम ने अपने एक दोहे मे  अमरबेल का जिक्र करते हुए लिखा है “ अमलबेल बिनु मूल की प्रतिपालत है ताहि, रहिमन ऐसे प्रभुहि तहिं, खोजत फिरिए काहि।” यानी जो ईश्वर बिना जड़ की अमरबेल का भी पालन पोषण करता है ऐसे ईश्वर को छोड़कर बाहर किसी ढूंढते फिरते हो। 

वर्तमान मे दुनिया भर की जान सांसत मे लाने वाले कारोना वायरस के उपचार के मामले मे भी केन्द्र सरकार के आयुष विभाग ने भी इस बीमारी के फैलाव को रोकने व बचाव मे अमर बेल के उपयोग का परामर्श जारी किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने लोकप्रिय कार्यक्रम मन की बात व अन्य माध्यमों से कोरोना के बचाव के लिए पारंपरिक व भारतीय मूल की प्रचलित पद्धतियों को अपनाने की सलाह दे चुके हैं।

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बुंदेलखंड की आवोहवा अमरबेल के लिए पैदा होने के लिए मुफीद मानी जाती है। इसीलिए यह इस अंचल के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों मे नजर आ जाती हैं। बताया जाता है कि भारत के अलावा चीन, कोरिया, थाईलैंड व पाकिस्तान की पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों मे भी उपचार के लिए अमरबेल का उपयोग किया जाता हैं। विश्व मे इसकी करीब 180 प्रजातियां  पाईं जातीं हैं। यह वैज्ञानिक जगत मे कुस्कुटा के नाम से जानी जाती है। भारत मे कुस्कुटा रिफ्लेक्सा बहुतायत मेंबेर, बबूल और सहपर्णी पेड़ों पर मिलती है।

अमलबेल के चिकित्सकीय गुणों के बारे मे फार्मोकोलाॅजी जर्नल्स में उल्लेख है कि इस अमरबेल में बुढ़ापे को रोकने, दर्द-निवारक, कृमिनाशक,नेत्र विकार, लीवर व किडनी के रोगों के उपचारक गुण भी होते हैं। बच्चों के शारीरिक विकास के लिए भी इसे लाभदायक बताया जाता है।

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प्रकृतिविद् किशोर पवार के मुताबिक अमरबेल अद्भुत होती है। इसमें न तो जड़ होती है और न ही पत्तियां। फिर भी सालों-साल जीवित रहती है। यह परजीवी जिस पेड़ पर लिपटती है उसी से भोजन-पानी प्राप्त करती हैंे। पौधे के नाम पर इसमें केवल पीला तना होता है और बिना सहारे के यह केवल एक हफ्ते से ज्यादा जीवित नहीं रह सकती है। इसलिए अंकुरित होते ही पोषण के लिए पेड़ से लिपट जाती है और धरती से उसका नाता हमेशा के लिए टूट जाता है।

इसके तने से निश्चित दूरी पर हिस्टोरिया नाम की जड़ें निकलतीं हैं जो इसे इसके पसंदीदा पेड़ से चिपकाए रखतीं हैं और यहीं जड़ें उसके लिए पेड़ से तैयार भोजन की आपूर्ति करती  रहतीं हैं।

अनुसंधानकर्ता रूनयान के मुताबिक अमरबेल अपने पसंदीदा पेड़ की ओर उसकी गंध के सहारे  बढ़ती है और अंकुरित होने के बाद एक घंटे के अंदर ही उस पेड़ से लिपट जाती है। जमीन से कोई संबंध नहीं रहने के कारण इसे कहीं-कहीं आकाश बेल भी कहा जाता है। बंगाल में यह स्वर्णलता के नाम से जानी जाती है।

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